क्या है VVPAT? आईये जानते हैं इसके बारे में।
VVPAT का मतलब VOTER VERIFIABLE PAPER AUDIT TRAIL है
VVPAT का मतलब VOTER VERIFIABLE PAPER AUDIT TRAIL है
भारत एक लोकतान्त्रिक देश है. यहाँ के लोकतंत्र की रक्षा के लिए समय समय पर आवश्यक क़दम उठाये जाते रहे हैं. भारत के निर्वाचन आयोग की भूमिका इस लोकतंत्र में बहुत अधिक रहती है. स्वतंत्रता के बाद भारत में जब निर्वाचन शुरु हुआ तो बैलट पेपर का इस्तेमाल किया जाता था. कालांतर में इस सिस्टम में बहुत ख़ामियाँ नज़र आयीं, जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा थी ही साथ ही लोकतंत्र के लिए भी घातक सिद्ध हो सकती थीं. इसके बाद ईवीएम का दौर आया. पिछले दो- तीन दशकों से ये निर्वाचन के लिए प्रयोग में लाया जा रहा है. अब पुनः देश के कई राजनैतिक पार्टियों द्वारा निर्वाचन आयोग में चुनाव के लिए वीवीपीएटी सिस्टम के इस्तेमाल करने की बात कही जा रही है. इसके बारे में पूरी जानकारी यहाँ दी गई है.
VVPAT क्या है?
वीवीपीएटी ‘वोटर वेरिफाईड पेपर ऑडिट ट्रायल’ का संक्षिप्त रूप है. इस सुविधा की सहायता से किसी भी वोटिंग मशीन के चुनाव के दौरान वोट डालने पर वोट पड़ जाने के बाद एक पर्ची निकलती है. ये एक स्वतंत्र वेरिफिकेशन प्रिंटेड मशीन है, जो किसी वोटिंग मशीन से संलग्न रहती है. ये पर्ची मतदाता को इस बात की पुष्टि कराती है कि उसका वोट उसके अनुसार सही जगह पर अर्थात उसके चहेते उम्मीदवार तक गया है. मत गणना के दौरान नतीजे में किसी भी तरह की असामान्यता पाए जाने पर इस पर्ची की सहायता ली जायेगी.
वीवीपीएटी का इतिहास
साल 2010 के सर्वदल राजनैतिक मीटिंग में ईवीएम के साथ साथ वीवीपीएटी का भी सुझाव रखा गया और सर्वसम्मति से एक एक्सपर्ट कमिटी का गठन हुआ. इस कमिटी का मुख्य कार्य पेपर ट्रायल की संभावनाएं तलाश करना था. इसके उपरांत भारत के निर्वाचन आयोग ने भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड तथा इलेक्ट्रॉनिक कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड द्वारा वीवीपीएटी मशीन का नमूना तैयार करने को कहा. इस कमिटी के तकनीक दल के सुझाव से साल 2011 के जुलाई के महीने में देश के पांच राज्यों में इसका प्रयोग किया गया. इस प्रयोग को देखते हुए भारत के सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग को इसका प्रयोग साल 2014 के लोकसभा चुनाव में करने को कहा, ताकि लोकसभा चुनाव में और भी पारदर्शिता आ सके.
वीवीपीएटी का भारत में उपक्रम
भारतीय निर्वाचन आयोग भारतीय चुनावों में वीवीपीएटी व्यवस्था लाने की कोशिश साल 2011 से कर रही है. यद्यपि इसका पहला प्रयोग साल 2013 में नागालैंड के उपचुनावों में किया गया किन्तु मिजोरम देश का पहला राज्य बना जहाँ पर इसका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर हो सका. इस राज्य के ऐजवल जिले में इसका 10 निर्वाचन क्षेत्रों में निर्वाचन इसके प्रयोग से हुआ. राष्ट्रीय स्तर पर देश के 16 वें लोकसभा चुनाव में इसका प्रयोग 543 निर्वाचन क्षेत्रों में से 8 निर्वाचन क्षेत्रों में हुआ, जिसके अंतर्गत देश के पाचं राज्यों में 516 मतदान केंद्र शामिल किये गये.
वीवीपीएटी कैसे काम करता है?
जब कोई मतदाता वीवीपीएटी मशीन की सहायता से वोट डालता है, तो इस मशीन से एक प्रिंटेड पर्ची निकलती है. इस पर्ची में वोट दी गयी पार्टी का चुनाव चिन्ह तथा उम्मीदवार का नाम छपा हुआ होता है. इस सुविधा से वोट देने वाला इस बात से निश्चिन्त हो जाता है कि उसका वोट उसके द्वारा चुने गये उम्मीदवार को गया है. मतदाता द्वारा वोट डालने के बाद इस मशीन के ग्लाश केस में लगभग 7 सेकंड तक ये पर्ची नज़र आती है. इसके बाद पर्ची प्रिंट हो कर मशीन के ड्राप बॉक्स में आ जाती है. पर्ची के ड्राप बॉक्स में आने पर एक बीप सुनाई देती है. इस मशीन को नियमित करने के ख़ास तरीक़े हैं, जिसे सिर्फ पोलिंग ऑफिसर जानते हैं. अतः कोई और इसे नियमित नहीं कर सकता है.
वीवीपीएटी की भविष्य योजनाएं
जिन चुनाव क्षेत्रों में अब तक इसका प्रयोग हुआ, वहाँ के मतदाताओं ने इस सुविधा की काफ़ी तारीफ की और संतुष्ट दिखे. इस परिणाम को देखते हुए भारत का निर्वाचन आयोग देश में होने वाले विभिन्न चुनावों के लिए इसका प्रयोग करना चाह रहा है. ये सुविधा सिर्फ ऐसे ईवीएम में जारी की जा सकती है, जिसका निर्माण साल 2006 के बाद नयी तकनीक के साथ हुआ है. निर्वाचन आयोग साल 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव में इसका प्रयोग करने जा रहा है.
निर्वाचन आयोग के लगभग दर्जनों बार स्मरण दिलाने के बाद इसके लिए फण्ड मुहैया किया गया है. 2017 में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखते हुए कई विरोधी पार्टियों ने ईवीएम में गड़बड़ी का शक जाहिर किया था. कई राजनैतिक पार्टियों ने चुनाव के लिए सिर्फ और सिर्फ वीवीपीएटी के इस्तेमाल की बात कही थी, जिससे चुनाव में पारदर्शिता बनी रहे.
अतः वीवीपीएटी के प्रयोग से देश के निर्वाचन में एक सकारात्मक परिवर्तन आने की उम्मीद की जा रही है.
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