भोजपुरी को भोजपुरी वाले ही तरजीह नहीं दे रहे हैं. यह कहना है अभिनेता सत्यकाम आनंद का जो गैंग्स ऑफ वासेपुर जैसी फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवा चुके हैं.
सत्यकाम ने कहा कि भोजपुरी में कंटेंट, क्वालिटी कंटेंट का घोर अभाव है. भोजपुरी संगीत का नाम आते ही पढ़ी-लिखी जनता नाक-भौं सिकोड़ने लगती है. इसका प्रमुख कारण अश्लीलता है. सोचने वाली बात ये है कि क्या ऐसा संगीत बनाने वाले लोग इन गानों को अपने घरों में बजाते हैं? पटना में रविवार को सत्यकाम ने कहा कि भोजपुरी में अच्छे कंटेंट के अभाव की समस्या के गहन अध्ययन के बाद उन्हें सिर्फ एक बात समझ में आयी कि भोजपुरी वाले ही इस भाषा को दगा दे रहे हैं.
भोजपुरी को अपनों ने ही मारा
दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष और भोजपुरी के अभिनेता मनोज तिवारी के बारे में सत्यकाम ने बेबाकी से कहा कि उन्होंने हमेशा अच्छे कंटेंट की कमी को स्वीकार किया है, लेकिन उन्होंने अपनी हैसियत के हिसाब से भोजपुरी की सेवा नहीं की है. सत्यकाम ने पूछा कि क्या मनोज तिवारी चाहते तो साल में भोजपुरी में दो-चार अच्छी फिल्में नहीं बन सकतीं थीं? दो-चार बच्चों को अच्छी फिल्म बनाने के लिए वज़ीफ़े भी दिये जा सकते है.
मां, माटी और माइग्रेशन
माँ, माटी, माइग्रेशन एक ऐसा ही प्रयास है. ये वीडियो अम्बा (अश्लीलतामुक्त भोजपुरी एसोशिएशन) के द्वारा सिर्फ ये दिखाने के लिए बनाया गया है कि भोजपुरी में अच्छे काम की काफी गुंजाइश है. अच्छा काम हो सकता है. वीडियो यूट्यूब पर मुफ्त में उपलब्ध रहेंगे. सत्यकाम ने कहा कि प्रयास ये रहेगा कि आने वाले समय में एक अच्छी इनवेंटरी तैयार कर ली जाए. अभिनेता सत्यकाम ने कहा कि माँ, माटी, माइग्रेशन हर उस आदमी की कहानी है जो दो जून की रोटी के जुगाड़ में अपनी मिट्टी से दूर जाकर रहने को मजबूर है.
देखिये वीडियो:
No comments:
Post a Comment