गैंग्स ऑफ़ वासेपुर का तो डायलॉग तो आपको याद ही होगा "रहने दो बेटा तुमसे न हो पायेगा" हाँ सही पहचाना! वही जे.पी सिंह उर्फ़ सत्यकाम आनंद गैंग्स ऑफ़ वासेपुर और कई टीवी शोज़ जैसे क्राइम पेट्रोल, तमन्ना हाउस में अपने एक्टिंग का लोहा मनवा चुके, का घर आरा शहर में है। यहाँ से वासेपुर झारखण्ड तक का सफ़र करने में उन्हें 18 वर्ष लग गया। आईये जानते है उनका सफ़र कहा से शुरू हुआ उसके ही जुबानी से-
ये बात 1991 की है। नाटक की दुनिया में मेरे आने का रास्ता बड़ा नाटीकिये था। मेरे पुरे परिवार का एक ही काम था पढाई करना और नौकरी पाकर सुखी जीवन बिताना। मेरे बाबूजी टीचर थें। मै पढ़ने में साधारण था। मेरे बड़े भाई चाहते थें की मेरा एडमिशन पटना के साइंस कॉलेज में हो जाए। जिसके लिए 90% मार्क्स अनिवार्य था। मुझे 10वीं में 64% आएं तो भैया ने कहा की तुम्हारा एडमिशन ड्रामा कोटा पर करवाया जाएगा। मै डर गया क्योकि मै बहुत शाई किस्म का लड़का था। जबरदस्ती मुझे लोकल नाट्य ग्रुप "नवोदय सिंह" के डायरेक्टर मि. डी रंजन से मिलवाया गया। मेरे भैया ने उन्हें बता दिया की मुझे ट्रायल के लिए ट्रेंड करे।
रंजन भैया ने कहा की हँस के दिखाओ तो मेरी तो फटी पड़ी थी की हंसी कहा से निकले। मै एक चोर की तरह हीं हीं हीं कर रहा था। बाकी लोग मेरी सकल को देखकर ठहाके लगा रहे थे। खैर दो तीन दिन बाद मैंने एक फ़िल्म देखी "मस्त कलंदर" जिसमे अनुपम खेर, अमरेश पूरी साहब और प्रेम चोपड़ा साहब थें। उस फ़िल्म में अनुपम खेर साहब गे बने थें। उनका काम मुझे अच्छा लगा था। शाम को मै रंजन भैया के पास गया और अनुपम खेर साहब का नक़ल कर के दिखाया। सब खुश हुएं। फिर मेरी तैयारी शुरू होने लगी। बहुत डर था। फिर अब वो दिन आ गया जब मुझे ट्रायल देना था। 72 कैंडिडेट थे जिसमे से एक का सेलेक्शन होना था। जैसा की मै पहले से जनता था की मेरा सिलेक्शन नहीं होगा। लेकिन तबतक मेरे ऊपर नाटक का भुत सवार हो गया था। गालियाँ खाते हुए मुझे अपने शहर आरा आना पड़ा। वापस अपने शहर में एडमिशन की दिक्कत हुई क्योकि सारे सीट फूल हो चुके थें। तब एक लोकल नेता को पकड़ा गया, जो की मेरे पिता जी के विद्यार्थी रह चुके थें और मेरे पडोसी भी थें। सब समझने के बाद नेताजी ने एक रास्ता निकला की कॉलेज के एक क्लर्क को पकड़ा जाए और उन्हें ये बताया जाए की नाटक करने के लिए और अपने आरा शहर का नाम रौशन करने के लिए मै बाहर गया था। क्लर्क साहब के ऑफिस में जब मुझे उनसे मिलवाया गया तब उन्हीने कहा की कैसे विश्वास करें की ये नाटक नौटंकी करता है। ये सवाल मेरे एडमिशन से था तो न चाहते हुए भी मुझे वहीँ एक्टिंग करके दिखाना पड़ा। मैं परेशान था की ऐसे चलते चलते एक्टिंग कैसे करूँ। फिर भी न चाहते हुए भी मुझे वो मिमिक्री कर के दिखाना पड़ा जो मैंने पटना में जा क्र के किया था। सब लोग दंग रह गए और कहा ये कैसी एक्टिंग है भाई लेकिन उन्हें क्या पता की मेरे पास मिमि करने के अलावा और कोई चारा नही था। फिर क्लर्क साहब ने कहा की यही एक्टिंग प्रिन्सिपल साहब को करके दिखाया जाए। फिर उनके केबिन में ले गए। प्रिंसिपल साहब न चाहते हुए भी मेरा नाटक देखा और मुझे अपने घर बुलाया। वहां जाकर मै अपना नाटक दिखाया। फिर प्रिंसिपल साहब ने नाटक कोटा से मेरा एडमिशन करवा दिया।
अब असली स्ट्रगल स्टार्ट हुआ।अब मेरे अंदर एक्टिंग का भूत सवार था। अब मुझे पढाई में कहाँ मन लगता। फिर भी पढाई करता था और अब पढाई के साथ साथ स्टेज शो भी करने लगा। शुरू में अखबार में जब मेरा नाम अत तो घर वाले बहुत खुश होते पर उनको क्या पता होता की मै अब पूरी तरह से रंगमंच और कलाकार की जिंदगी जीने लगा था। मेरे परिवार ने बहुत कोशिश की मेरा नाटक कैरियर रोकने के लिए लेकिन मेरे अंदर अब नाटक भर चूका था।
ये बात 1994-95 की होगी। जब मुझे एक आदमी मिला जिसका नाम था प्रेम सागर जी। वो भी आरा से थे पर रहते नॉएडा में थे एयर दिल्ली में म्यूजिक शो करते थें। उन्होंने बातों बातों में बताया की एक एक्टर है मनोज वाजपेयी वो भी बिहार से हैं उनका एक्टिंग देखने के लिए राष्ट्रपति आये थे।
मै भी सोचने लगा की मुझे भी अब राष्ट्रपति पुरस्कार चाहिए। इसको लेकर मै दिल्ली जाने को सोचा पर ये इतना आसान नही था।
मै दिल्ली गया लेकिन मुझे एडमिशन नही मिला। मैंने एक साल ऐसे ही गुजारे। मेरे घर पर अब मालूम हो चूका था की अब मुझे क्या करना है। मैंने अपने बाबू जी से बोला की मुझे भी राष्ट्रपति पुरस्कार चाहिए! मनोज वाजपेयी जी को मिला है तो उन्होंने जूता निकला और मुझे खूब मारा और मनोज वाजपेयी जी को भी खूब गाली दी। मैंने ये बात मनोज वाजपेयी जी को बताई भी थी जब मै उनके साथ गैंग्स ऑफ़ वासेपुर की शूटिंग कर रहा था।
मै कई बार दिल्ली गया और आया इस बात पर घर वालों ने खूब मज़ाक उड़ाया। उन्हें क्या पता था नाटक क्या होता है। बाद में मेरे बाबूजी ने कहा की जब यही करना है तो यही कर पैसा मई भेज दूंगा। उसजे बाद मै फिर दिल्ली आ गया। फिर मैंने अश्मिता थिएटर ग्रुप ज्वाइन किया। फिर मै NSD में जाने का सपना देखने लगा। मेरी पढाई आरा में चल रही थी उस समय जम कर चोरी होती थी उस समय लालू जी का राज था। मैं अब पढाई के साथ साथ नाटक भी करने लगा।
अश्मिता ग्रुप में पहला नाटक था "रक्त कल्याण" जिसमे लीड एक्टर था "दीपक डोबरियाल" फिर मुझे मालूम चला की पियूष मिश्रा हमारे ग्रुप से जुड़ रहे हैं। फिर मै 1997 में NSD की एग्जाम दी पर मेरा किस्मत उस समय भी साथ छोड़ा। मैंने कई बार आत्महत्या करने की कोशिश की पर कभी कर नही पाया। फिर में अब आरा जाने की सोची पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।
जब मै घर जाने की तैयारी कर रहा था तो मेरे एक दोस्त ने बोला की स्वतंत्रता दिवस के मौके पर एक ग्रैंड लाइट एंड साउंड का आयोजन हो रहा है उसमे बहुत पैसा मिलेगा। मैंने पैसे के लिए काम करने चला गया और किया। अच्छा पैसा मिला। कुछ दिनों बाद हम गोवा के लिए निकल गए। वहां मैंने काम किया वहा हमारे ग्रुप में से एक लड़की थी सीमा मुझे उससे प्यार हो गया था। मैंने उससे अपने प्यार का इज़हार कर दिया। उसने हाँ कर दिया। मैंने बाबूजी को फोन किया और बोला मुझे एक लड़की से प्यार हो गया है। वो इस बात को नहीं समझ पाये और मैं दिल्ली आ गया। पर सिमा के वजह से मुम्बई शिफ्ट होना पड़ा।
मुझे बांद्रा में मरीना गेस्ट हाउस में 3 महीने रहा। मेरे घर से पैसा आना बन्द हो गया उन्होंने सोचा की सारा पैसा लड़की पर खर्च कर रहा है। फिर मैंने जिम में वेटर का काम किया वहा मुझे ₹80 प्रतिदिन मिलता था। फिर कुछ महीने बाद मीरा रोड पर 1BHK फ्लैट किराये पर लिया। और फिर मैंने सिमा से शादी की वो भी बाबूजी माता जी सिमा के माता पिता की आज्ञा से और आज हमारा एक लड़का है जिसका नाम पीपु है। अब पैसा का बहुत दिक्कत था। तब मैंने एक कुरियर कंपनी में काम करना शुरू किया और प्रोडक्शन हाउस में भी लोगो से मिलना चालू हुआ। फिर मुझे जी टीवी के शो संपत एंड संपत में काम मिला 3 महीने का काम था। फिर मेरी पत्नी ने ने असिस्टेंट कॉस्ट्यूम का काम किया, शादी के 3 साल ऐसे ही निकल गए। इसी बीच मेरी पत्नी प्रेग्नेंट हो गयी। हमने इस बारे में बहुत सोचा। फिर जी टीवी के शो "तमन्ना हाउस" में काम मिला। अब जैसे तैसे घर चलने लगा। अब मेरे पास 2 नए सीरियल का ऑफर भी था। फिर मुझे "द्वंद्व'' फ़िल्म में काम मिला उस सिलसिले में मुझे नागपुर जाना पड़ा। मुझे ऑडिशन देना पड़ा। बहुत टेंशन में था की पता नही मेरा सेलेक्शन होगा की नही। पर मेरा सेलेक्शन हुआ और फ़िल्म बनी और ये फ़िल्म मेरे लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुई। इस फ़िल्म के स्पेशल स्क्रीनिंग में अनुराग कश्यप जी आएं और मुझे गैंग्स ऑफ़ वासेपुर में जे पी सिंह के लिए सेलेक्ट कर लिये।
Source: Satyakam Anand Blog
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