चित्रगुप्त पूजन मंत्र
मसीभाजन संयुक्तश्चरसि त्वम्! महीतले। लेखनी कटिनीहस्त चित्रगुप्त नमोस्तुते।। चित्रगुप्त ! नमस्तुभ्यं लेखकाक्षरदायकं। कायस्थजातिमासाद्य चित्रगुप्त! नामोअस्तुते।।
दिवाली के पांच दिवसीय त्योहार का आखिरी दिन यम द्वितीया के नाम से भी प्रचलित है। इस दिन भाई-बहन के प्रेम का पर्व भैयादूज मनाने के अलावा कायस्थ लोग ब्रह्मा जी के पुत्र भगवान चित्रगुप्त की पूजा करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महाभारत काल में भीष्म पितामह ने भी चित्रगुप्त भगवान की पूजा की थी और इसी पूजा से प्रसन्न होकर उन्हें चित्रगुप्त द्वारा अमरता (इच्छा मुत्यु) का वरदान मिला था। कहा जाता है कि जिनकी आजीविका का माध्यम उनकी कलम है उन्हें जरूर यह पूजा करना चाहिए। भगवान चित्रगुप्त धर्मराज की सभा में पृथ्वीवासियों के पाप पुण्य का लेखा-जोखा करते हैं।
कार्तिक मास के शुल्क पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाई जाने वाली इस पूजा में कायस्थ समाज के लोग आज भी कलम दवात की पूजा करते हैं। खास बात यह कि इस दिन वे कलम को लेखनी के लिए स्पर्श तक नहीं करते हैं।
भगवान चित्रगुप्त की उत्पत्ति कैसे
भगवान चित्रगुप्त की उत्पत्ति कैसे
प्राचीन ग्रंथों के आधार पर कहा जाता है कि ब्रह्मा जी के मुख्य से ब्रह्माण, बाहु से क्षत्रिय, उदर से वैश्य तथा पाव शुद्र की उत्पति हुई तथा इनके वर्ण के आधार पर कार्य संपादित होते रहे। ब्रह्म जी की आज्ञा से धर्मराज जी सबका कार्य देखते रहे। काफी परेशानी के बाद ब्रह्मा जी 10 हजार वर्ष तक महाविष्णु जी का ध्यान लगाएं, जब ध्यान टूटा तो उनके सामने एक दिव्य पुरूष हाथ में कलम-दवात, छुरी तथा पीतांबर वस्त्र खड़े थे। यहीं अवतारी पुरूष भगवान चित्रगुप्त है।
विशेष पूजा में क्या है
चूंकि कायस्थ लोग भगवान चित्रगुप्त के वंशज है। चित्रगुप्त जी सभी जीवों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखते हैं तथा कर्मो के आधार पर दण्ड की व्यवस्था करते है। इसलिए कलम, दावात की पूजा विशेष तौर पर की जाती है। लेखनी ही जीविकोपार्जन का मुख्य साधन रहा है। इसी मंत्र को लिखकर भगवान के प्रति समर्पित करते है।
चित्रगुप्त भगवान की कथा
शास्त्रों के अनुसार सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा जी ने दस हजार सौ वर्ष की समाधि लगाई। जब उनकी आंखें खुली तो उनके सामने हाथ में कलम-दवात लिये तेजस्वी, अतिसुन्दर विचित्रांग, स्थिर नेत्र वाले, एक पुरुष को खड़े देखा। उस अव्यक्त पुरुष को नीचे ऊपर देखकर ब्रम्हा जी ने समाधि छोडकर पूछा हे पुरुषोत्तम हमारे सामने स्थित आप कौन हैं। ब्रह्मा जी का यह वचन सुनकर वह पुरुष बोला हे विधे में आप ही के शरीर से उत्पन्न हुआ हूँ इसमें किंचित मात्र भी संदेह नहीं है। यह वाक्य सुनकर ब्रह्मा जी हंसकर प्रसन्न मुद्रा से बोले की मेरे शरीर से तुम उत्पन्न हुये हो इससे तुम्हारी कायस्थ संज्ञा है और पृथ्वी पर चित्रगुप्त तुम्हारा नाम विख्यात होगा। धर्मराज की यमपुरी धर्माधर्म वितार के लिए तुम्हारा निश्चित निवास होगा।
चित्रगुप्त का प्रथम विवाह सूर्यनारायण के बड़े पुत्र श्राद्धादेव मुनि की कन्या नंदनी एरावती से हुआ। इससे उनके चार पुत्र हुए। प्रथम भानु जिनका नाम धर्मध्वज है जिसने श्रीवास्तव कायस्थ वंश बेल को जन्म दिया। द्वितीय पुत्र विभानु जिनका नाम समदयालु है, जिसने सूरजध्वज वंश बेल को जन्म दिया। तृतीय पुत्र विशवभानु, जिसने निगम कायस्थ वंश बेल को जन्म दिया। चतुर्थ पुत्र वीर्यवान, जिसने कुलश्रेष्ठ कायस्थ वंश को जन्म दिया।
चित्रगुप्त का दूसरा विवाह सुशर्मा ऋषि की कन्या शोभावती से हुआ। इनसे उन्हें आठ पुत्रों की प्राप्ति हुई। प्रथम पुत्र चारु, जिसने माथुर कायस्थ को जन्म दिया | द्वितीय पुत्र चित्रचारू जिनका नाम दामोदर है उसने कर्ण कायस्थ को जन्म दिया। तृतीय पुत्र जिनका नाम मतिमान है उन्होंने सक्सेना कायस्थ को जन्म दिया। चौथे पुत्र सुचारु, जिसने गोड़ कायस्थ वंश को जन्म दिया। पंचम पुत्र चारुस्त, उन्होंने अस्थाना कायस्थ को जन्म दिया। षष्ठ पुत्र हिमवान, जिसने अम्बष्ठ कायस्थ वंश को जन्म दिया, सप्तम पुत्र चित्न, जिसने भटनागर कायस्थ वंश को जन्म दिया और अष्ठम पुत्र अतिनदीय, जिसने वाल्मीक कायस्थ वंश को जन्म दिया।
चित्रगुप्त पूजा से लाभ
पुलस्त्य मुनि के अनुसार जो कोई सामान्य पुरुष या कायस्थ चित्रगुप्त जी की पूजा करेगा वह भी पाप से छूटकर परमगति को प्राप्त करेगा। सर्व-विधि से चित्रगुप्त की पूजा से बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है। चित्रगुप्त की दिव्य कथा को जो श्रेष्ठ मनुष्य भक्ति मन से सुनेंगे वे मनुष्य समस्त व्याधियों से छूटकर दीर्घायु होंगे और मरने पर जहां तपस्वी लोग जाते है वहीं उनका भी निवास होगा।
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