हमारा देश सांस्कृति और परम्परा विविधताओं से भरा है। कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को मनाए जाने वाले 'भैया दूज' को आमतौर पर 'गोधन' के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन उत्तर भारत के कई राज्यों में बहनें अपने भाइयों को 'शाप' देने की अनोखी परम्परा निभाती हैं। मान्यता है कि इस 'शाप' से भाइयों को मृत्यु का डर नहीं होता।
इस आकृति के भीतर चना, ईंट, नारियल, सुपारी और वह कांटा भी रख दिया जाता है, जिसे बहनें अपनी जीभ में चुभाकर भाइयों को कोसती हैं। इस दौरान महिलाएं गीत और भजन भी गाती हैं। इनहें कूट लेने के बाद उसमें डाले गए चने को निकाल लिया जाता है और फिर सभी बहनें अपने-अपने भाइयों को तिलक लगाकर इसे खिलाती हैं। इस दौरान भाई अपनी बहनों को उपहार भी देते हैं। महिलाओं का कहना है कि यह परम्परा काफी प्राचीन है, जिसे वे भी पूरी आस्था से मनाती हैं। बिहार के औरंगाबाद जिले के पंडित महादेव मिश्र कहते हैं कि इस परम्परा के पीछे मान्यता है कि द्वितीया के दिन भाइयों को गालियां और शाप देने से उन्हें यम (यमराज) का भी भय नहीं होता। गोधन को यम द्वितीया भी कहा जाता है।
प्राचीन काल में एक राजा के बेटे की शादी थी। राजा ने अपनी विवाहित पुत्री को भी बुलाया था। दोनों भाई-बहनों में अपार स्नेह था। बहन जब भाई की बारात में शामिल होने जा रही थी तो उसने लोगों को यह कहते हुए सुना कि चूंकि राजा की बेटी ने अपने बेटे को कभी गाली नहीं दी, इसलिए वह बारात के दौरान ही मर जाएगा। इसके बाद बारात निकलने के रास्ते में बहन ने अपने भाई को खूब गालियां दीं और रास्ते में जो भी सांप-बिच्छू दिखाई दिए, उन्हें मारती और आंचल में डालती चली गई। जब वह घर लौटी तो उसके भाई के प्राण लेने के लिए यमराज उनके घर आए हुए थे, लेकिन यमराज ने जब भाई-बहन का प्रेम देखा तो वे राजा के बेटे का प्राण लिए बगर ही यमपुरी लौट गए। यम द्वितीया के दिन जो भी बहन अपने भाई को शाप और गाली देगी, उस भाई को मृत्यु का भय नहीं रहता। तभी से बहनें गोधन पूजा के रूप में यह परम्परा मनाती आ रही हैं। इस दिन सभी घरों में मीठा पकवान बनता है और पूरा परिवार मीठा भोजन ही करता है।
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