एक समय देश में मार्टिंस लाइट रेलवेज (एमएलआर) नामक एक कंपनी थी जिसे लोग मैसर्स मार्टिन ऐंड कंपनी भी कहते थे। इसका कार्यालय कोलकाता में था। आरा-सासाराम लाइट रेलवे की शुरुआत 1914 में हुई थी। आरा सासाराम लाइट रेलवे मार्ग पर लोकोमोटिव यानी इंजन के तौर पर भाप इंजन का इस्तेमाल किया जाता था। यह इंजन हंसले कंपनी ने 1910 में बनाया था। हंसले ब्रिटेन की कंपनी है जो दुनिया के कई देशों में नैरो गेज लाइनों के लिए खास तौर पर स्टीम लोकोमोटिव (इंजन) का निर्माण करती थी।
फोटो: आरा स्टेशन पर खड़ी ट्रेन |
बिहार के पुराने शाहाबाद जिले का मुख्यालय आरा में हुआ करता था। लिहाजा लोगों को जिला समाहरणलाय से जुडे तमाम कार्यों के लिए आरा आना पड़ता था। सासाराम, भभुआ, डेहरी और कैमूर की पहाड़ के तलहटी में बसे गांवों के लोंगों के आरा तक पहुंचने के लिए ये एकमात्र साधन थी "आरा सासाराम लाइट रेलवे"। अगर स्टेशन पहुंच गए हैं रेलगाड़ी छूट गई है तो कोई बात नहीं, रेलगाड़ी के साथ दौड़ लगाकर आप गाड़ी में सवार होने में सफलता प्राप्त कर सकते थे। भोजपुर जिले के पीरो प्रखंड के गांव कुसुम्ही के लोगों को रेल इतनी भाती थी कि गांव के लोगों इस रेल के सफर पर एक भोजपुरी गीत तैयार कर लिया था और शाम को सांस्कृतिक मंडली में लोगइस गीत को इस साज बाज के साथ गाते थे।
फोटो: पीरो स्टेशन पर खड़ी ट्रेन |
शाहाबाद जिले में लाइट रेलवे का निर्माण
बिहार के पुराने शाहाबाद जिले का भौगोलिक आकार काफी बड़ा था। अब शाहाबाद जिले के विभाजन होकर चार जिले बन चुके हैं। भोजपुर, रोहतास, बक्सर और कैमूर। बीसवीं सदी के आरंभ में जिले में पक्की सड़कों का जाल बहुत कम था। इसलिए इस बड़े जिले में परिवहन के लिए रेलमार्ग की जरूरत महसूस की गई। बीसवीं सदी के शुरूआत के साथ ही ग्रैंड कोर्ड (हावड़ा दिल्ली मुख्य लाइन) और मुगलसराय पटना रेल मार्ग को जोड़ने के लिए लाइट रेलवे चलाने की योजना बनी। मार्टिन एंड बर्न की ओर से आरा सासाराम लाइट रेलवे कंपनी का गठन 19 अक्तूबर 1909 को एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के तौर पर हुआ और इस मार्ग पर रेल लाइन का निर्माण शुरू हुआ। इस रेल मार्ग के लिए युद्धस्तर पर निर्माण कार्य चला। लगभग 100 किलोमीटर की इस परियोजना पर पांच साल में काम पूरा कर लिया गया।
फोटो: बिक्रमगंज स्टेशन पर खड़ी ट्रेन |
साल 1914 में आरा सासाराम लाइट रेलवे पर भाप इंजन से चलने वाली रेलगाड़ियां दौड़ने लगीं। इस रेल मार्ग में 100 किलोमीटर के बीच 15 रेलवे स्टेशन थे। यह एक नैरो गेज रेल परियोजना थी जिसकी पटरियों की चौड़ाई 2 फीट 6 ईंच यानी 76 सेंटीमीटर होती है। आरा सासाराम के बीच पैसेंजर ट्रेनों के अलावा मालगाड़ियों का भी संचालन किया जाता था। शाहाबाद जिला धान उत्पादन के लिहाज से बिहार का प्रमुख जिला था लिहाजा ये लाइट रेलवे जिले के गांवों के लिए व्यापारिक महत्व भी रखती थी। 1947 में देश आजाद होने के बाद भी इस लाइट रेलवे का सफर बदस्तूर जारी रहा। ज्यादातर निजी कंपनियों और राजे रजवाड़ों द्वारा चलाई जाने वाली रेल परियोजनाओं का राष्ट्रीयकरण हो गया। पर इस रेलमार्ग पर रेलगाड़ियों का संचालन मार्टिन एंड बर्न कंपनी के हाथ में ही रहा। हालांकि 4 अप्रैल 1951 को जिला परिषद शाहाबाद ने एक पत्र लिखकर मार्टिन कंपनी के समाने आरा सासाराम लाइट रेलवे के समस्त इन्फ्रास्ट्रक्चर को खरीदने का विकल्प पेश किया। हालांकि ऐसा हो नहीं सका। आरा सासाराम लाइट रेल 1978 तक यानी 64 साल क्षेत्र के लोगों को सेवाएं देती रही।
फोटो: सासाराम स्टेशन पर खड़ी ट्रेन |
बंदी के कारण
साल 1950 से 1970 के दशक में आरा सासाराम लाइट रेलवे को अच्छी संख्या में पैसेंजर मिल रहे थे। पर 1975 के आसपास लगातार यात्रियों की संख्या में कमी आने लगी। रेलमार्ग के समांतर चल रहे सड़क पर चलने वाली बसों की स्पीड रेल से ज्यादा थी। लिहाजा यात्रियों के लिए रेल का सफर ज्यादा समय लेने वाला होने लगा। यात्रियों की कमी के कारण मार्टिन कंपनी को आरा सासाराम लाइट रेलवे से घाटा होने लगा। कंपनी की देश में चल रही बाकी रेल परियोजनाएं भी बंद हो चुकी थीं। आरा सासाराम रेल मार्ग पर दौड़ने वाली पैसेंजर ट्रेनों की स्पीड कम थी। इससे तेजी से अब बसों से मंजिल तक पहुंचा जा सकता था। माल ढुलाई से कमाई में काफी गिरावट आने लगी थी, लिहाजा कंपनी ने अपना कारोबार समेटने का फैसला लिया।
अपने आखिरी दौर में चली ट्रेन |
1974 के बाद आरा सासाराम लाइट रेलवे के प्रबंधन ने घोषणा कर दिया था साल दर साल घाटा होने के कारण कंपनी में तालाबंदी के हालात बन आए हैं। कंपनी को 1970 के बाद सड़क परिवहन की ओर से जबरदस्त प्रतिस्पर्धा मिल रही थी। वहीं रेलमार्ग का रोलिंग स्टॉक, पटरियां और अन्य परिसंपत्तियों पुरानी पड़ने लगी थीं। इनका उचित रखरखाव नहीं हो पा रहा था। उनके रखरखाव के लिए बड़े खर्च की आवश्यकता थी, जो खर्च कंपनी करने को तैयार नहीं थी। साल 18 दिसंबर 1974 को कंपनी ने पहली बार इस रेल मार्ग को बंद करने के लिए एक नोटिस जारी किया। लेकिन भारत सरकार, रेलवे बोर्ड की ओर से इस लाइट रेलवे कपंनी आर्थिक सहायता दी गई। ढाई लाख रुपये के एडवांस दिए जाने के बाद कंपनी ने अगले तीन साल तक और इस रेल मार्ग का संचालन किया। तीन साल का सहायता काल पूरा हो जाने के बाद 29 अक्तूबर 1977 को केंद्र सरकार ने कंपनी को रेल परिचालन बंद करने का निर्देश दिया। आरा सासाराम लाइट रेलवे मार्ग पर 15 फरवरी 1978 को आखिरी पैसेंजर ट्रेन ने सफर किया। इसके बाद आरा सासाराम लाइन पर नैरो गेज ट्रेनों का सफर इतिहास बन गया। हालांकि अब इस मार्ग पर लंबे संघर्ष के बाद 2008 में बड़ी लाइन बिछाई गई और इस मार्ग पर ट्रेने फिर से चलने लगी, पर 1978 के बाद तीन दशक तक ये जिलें रेल मार्ग से विहीन रहें।
आईये देखते हैं इस सुहाने सफर के कुछ तस्वीरें
(सारी तस्वीरें राज स्ट्रीम यूनाइटेड किंगडम के वेबसाइट से ली गयी है)
आरा से सासाराम को रवाना होती ट्रेन |
ऐसे ही सड़क के बराबर चलती थी ट्रेन |
सासाराम स्टेशन पर यही खड़ी की जाती थी ट्रेन |
ट्रेन आरा से 2 बजे रवाना होती हुई |
कसाप स्टेशन |
जानकारी गूगल द्वारा प्राप्त
No comments:
Post a Comment