आज से शुरू हुआ जिउतिया व्रत, जानें इससे जुड़ी कथा - Arrah City | Arrah Bhojpur Bihar News

Post Top Ad

आज से शुरू हुआ जिउतिया व्रत, जानें इससे जुड़ी कथा

आज से शुरू हुआ जिउतिया व्रत, जानें इससे जुड़ी कथा

Share This


जिउतिया व्रत में आज के दिन नहाय-खाय की परम्‍परा है. जिसके बाद कल से यानी बुधवार को संतान की लम्‍बी 
 आयु के लिए उपवास रखा जाता है और पूजा-अर्चना की जाती है. कल निर्जला उपवास किया जायेगा. इस व्रत में  
 
पानी तक नहीं पीना होता है. इस व्रत को आश्विन कृष्ण पक्ष के प्रदोष काल में किया जाता हैं

हर माता-पिता की इच्‍छा होती है‍ कि उनके बच्‍चे खूब तरक्‍की करें. उनकी आय में बढ़ोतरी हो और उनकी उम्र लम्‍बी हो। इसकी कामना के साथ दो दिवसीय जीवित पुत्रिका यानी जिउतिया व्रत आज से शुरू हो गया है. इस व्रत में आज के दिन नहाय-खाय की परम्‍परा है. जिसके बाद कल से यानी बुधवार को संतान की लम्‍बी आयु के लिए उपवास रखा जाता है और पूजा-अर्चना की जाती है. कल निर्जला उपवास किया जायेगा. इस व्रत में पानी तक नहीं पीना होता है. इस व्रत को आश्विन कृष्ण पक्ष के प्रदोष काल में किया जाता हैं.


कहा जाता है कि यह व्रत माताओं द्वारा अपने बच्‍चों की आयु, निरोगी काया तथा उनके कल्याण के लिए किया जाता है. इस व्रत को कई जगहों पर ‘जीतिया’ या ‘जीउतिया’, ‘जिमूतवाहन व्रत’ भी कहा जाता है.

इस व्रत के साथ जीमूतवाहन की कथा जुड़ी हैं, जो माताएं यह व्रत रखती हैं उन्‍हें जीमूतवाहन की कथा जरूर सुननी चाहिए. आइए आपको संक्षेप में यह कथा बताते हैं- जीमूतवाहन गंधर्वों के राजकुमार थे, वह बड़े ही उदार व्‍यक्ति थे. इनके पिता ने वृद्धाआश्रम जाने की सोची. जाने से पहले इन्‍होंने जीमूतवाहन को राजा के सिहांसन पर बैठा दिया, लेकिन जीमूतवाहन का मन राजकाज में नहीं लगता था. जिससे विमुख होकर जीमूतवाहन ने अपने छोटे भाइयों को राजकाज सौंप दिया और खुद जंगल में अपने पिता के पास चले आए. यहां आकर उन्‍होंने मलयवती नाम की एक राजकुमारी से विवाह भी कर लिया.


एक दिन जंगल में भ्रमण के दौरान जीमूतवाहन को विलाप करती हुई एक वृद्ध स्त्री मिली. महिला से उन्‍होंने विलाप करने का कारण पूछा तो महिला ने बताया कि वह शंखचूड़ नाग की माता है जिसे विष्णु के वाहन गरूड़ आज उठाकर ले जाएंगे. यह सून जीमूतवाहन ने खुद गरूड़ के साथ जाने का फैसला किया. अब गरूड़ आया और शंखचूड़ को उठाकर ले जाने लगा, तभी उसे आभास हुआ कि वह शंखचूड़ की जगह किसी व्‍यक्ति को ले आया है.



अब गरूड़ ने जीमूतवाहन से पूछा कि तुम कौन हो. जीमूतवाहन ने कहा कि मैं शंखचूड़ की माता को पुत्र वियोग से बचाना चाहता हूं, तुम भोजन स्‍वरूप मेरा भोग कर सकते हो. तभी से इस व्रत का प्रचलन हुआ और यह कथा प्रचलित हुई

No comments:

Post a Comment

Post Bottom Ad

Our Social Media Links