आरण्य देवी मंदिर के बारे में कई किदवंतियां हैं। बताया जाता है प्राचीनकाल में सिर्फ आदिशक्ति की प्रतिमा थी। वैसे तो यहां भक्तों का बराबर तांता लगा रहता है। शारदीय व चैती नवरात्र पर विशेष पूजा अर्चना को भक्तगण पहुंचते हैं। दूसरे प्रदेशों से भी काफी संख्या में भक्त लोग पूजा अर्चना को यहां आते हैं। नवरात्र विशेष पर आईये जानते है क्या है इस मंदिर का इतिहास।
इतिहास:
इस मंदिर के चारो ओर पहले वन था। पांडव वनवास के क्रम में आरा में भी ठहरे थे। पांडवों ने आदिशक्ति की पूजा-अर्चना की। मां ने युधिष्ठिर को स्वप्न में संकेत दिया कि वह आरण्य देवी की प्रतिमा स्थापित करे। तदोपरांत धर्मराज युधिष्ठिर मां आरण्य देवी की प्रतिमा स्थापित की थी।
वर्ष1953 में इस मंदिर में श्रीराम, लक्ष्मण, सीता, भरत, शत्रुघ्न और हनुमान की संगमरमर की प्रतिमा स्थापित की गयी। इनके अलावा इस मंदिर में अन्य देवी-देवताओं की भी प्रतिमाएं स्थापित है।
मंदिर का मुख्य द्वार पूरब की तरफ है। मुख्य द्वार के ठीक सामने मां की भव्य प्रतिमाएं हैं। बताया जाता है कि जब भगवान राम, लक्ष्मण और विश्वामित्र बक्सर से जनकपुर धनुष यज्ञ में शामिल होने के लिए जा रहे थे तो मां आरण्य देवी की पूजा-अर्चना की थी। यह भी बताया जाता है कि द्वापर युग में इस स्थान पर राजा म्यूरध्वज राज करते थे। इनके शासन काल में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन के साथ यहां पहुंचे। उन्होंने राजा के दान की परीक्षा ली। इस मंदिर में छोटी प्रतिमा को महालक्ष्मी और बड़ी प्रतिमा को सरस्वती का रूप माना जाता है।
कैसे पहुंचे मंदिर?
आइये हम आपको बताते है - आरा रेलवे स्टेशन व बस पड़ाव से सीधे शीश महल चौक वहां से लगभग 2 सौ मीटर उत्तर-पूर्व छोर पर स्थित है अति प्राचीन आरण्य देवी का मंदिर। मंदिर में जाने के लिये सुगम मार्ग है। यहाँ मंदिर के आस-पास पूजा सामग्रियों की दुकानें सजी रहती है।
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